CHRISTIAN ARTICLES AND LITERATURE
(मसीही उल्लेख तथा साहित्य)
A-42 धर्म, परमेश्वर और मनुष्य का रिश्ता!
मनुष्य की सबसे बेशकीमती चीजों में से एक उसके रिश्ते होते हैं। कुछ रिश्ते मनुष्य के जन्म लेते ही बन जाते हैं जैसे माता-पिता, भाई-बहन इत्यादि, और कुछ रिश्ते वह अपने जीवन के सफर में बनाता है जैसे दोस्त, पति, पत्नी इत्यादि। वह इन्हीं रिश्तो के साथ अपने सुख-दुःख बांटता है l
परंतु जब हम बात करते हैं सृष्टिकर्ता परमेश्वर की, जो इन सभी रिश्तो का आधार है, तब क्या मनुष्य यह जानता है कि परमेश्वर से भी रिश्ता बनाया जा सकता है? क्या मनुष्य उससे अपना रिश्ता बनाना जरूरी समझता है? क्या मनुष्य के बनाए हुए धर्म उसे परमेश्वर के साथ रिश्ता बनाने के बारे में कुछ सिखाते हैं? अगर हां तो क्या वह धर्म परमेश्वर के साथ रिश्ता बनाने में कामयाब हो सके हैं? नहीं!
सिर्फ बाइबल ही, जो परमेश्वर का दिया हुआ वचन है, हमें परमेश्वर के साथ रिश्ता बनाने के बारे में सही रीति से सिखाती है। बाइबल हमें सिखाती है कि संसार के आरंभ में मनुष्य का सबसे पहला रिश्ता परमेश्वर के साथ था। बाइबिल हमें सिखाती है कि मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता अपने सृष्टिकर्ता परमेश्वर के साथ होना चाहिए। बाइबिल हमें यह भी सिखाती है कि कैसे मनुष्य ने अपने पापमय स्वभाव के कारण आरंभ में ही परमेश्वर से अपना रिश्ता तोड़ लिया था, और कैसे परमेश्वर ने अपने प्रेम के कारण मनुष्य से दोबारा रिश्ता स्थापित करने के लिए अपने इकलौते पुत्र यीशु मसीह का बलिदान दिया।
संसार का कोई भी मनुष्य जब अपने पापों से मन फिराकर प्रभु यीशु मसीह के बलिदान पर विश्वास करके, उसे अपना एकमात्र उद्धारकर्ता स्वीकार कर लेता है, तब वह सही मायनों में अपने धर्म से निकलकर परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते का आनंद उठा पाता है। परमेश्वर और मनुष्य के रिश्ते के बारे में और जानने के लिए ये वीडियो देखें ।
A-41 परमेश्वर एक और जातियाँ अनेक क्यों?
क्या कभी आपने सोचा है कि अगर परमेश्वर एक है तो संसार में अलग-अलग रंग-रूप के लोग, अलग-अलग भाषाएँ और अलग-अलग धर्म क्यों है? इसका जवाब सिर्फ बाइबल में मिलता है जो परमेश्वर का वचन है।
“सत्य” की एक विशेषता यह है कि सत्य कभी छिपता नहीं और उसका प्रकाश चारों और अवश्य फैलता है। सत्य मनुष्य के मानने या ना मानने पर निर्भर नहीं होता। अगर कोई निष्पक्ष मन से सत्य को ढूंढें, तो उसे पृथ्वी के कोने-कोने में बाइबिल के सत्य की छाप मिल जायेगी l
केवल बाइबिल हमें सिखाती है कि मनुष्य के बनाने के पीछे परमेश्वर का क्या उद्द्येश्य था, मनुष्य संसार में कैसे फैला, अलग-अलग रंग-रूप और भाषाएँ कहाँ से आए, कैसे मनुष्य ने अपने पापमय स्वभाव के कारण अलग-अलग धर्मों की स्थापना की इत्यादि l इन सब विषयों को विस्तार से जानने के लिए हमारे ये विडियो देखिये -
https://youtu.be/Eoa2APHTjKs
https://youtu.be/nsv1zrPgu_o
https://youtu.be/HBRTSJY-aTo
https://youtu.be/91nF4nrK-20
https://youtu.be/Ti4m3UtncqM
https://youtu.be/5bmS6sL__Bo
A-40 आपकी आंखें कहां केंद्रित हैं?
हम जानते हैं कि सुख और दुख मनुष्य के जीवन का हिस्सा है फिर चाहे वह मसीही हो या गैर मसीही, परंतु कभी कभार हमारे जीवन में हमारी आंखों के बिल्कुल सामने विशाल चट्टान के समान ऐसी असंभव परिस्थिति आ जाती है जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की होती।
ऐसी परिस्थिति में किसी भी इंसान का निराश होकर टूट जाना बहुत आम बात है क्योंकि उस इंसान की आंखें और ध्यान उसी परिस्थिति पर केंद्रित होता है।
परंतु बाइबल हमें सिखाती है कि एक मसीही की आंखें और ध्यान हमेशा परमेश्वर पर केंद्रित होनी चाहिए क्योंकि ऐसी कोई भी परिस्थिति नहीं है जो एकमात्र परमेश्वर प्रभु यीशु मसीह के नियंत्रण से बाहर हो।
एक मसीही को चाहिए कि वह अपने रोजमर्रा के जीवन में बाइबल के वचनों को पढ़े, उनका अध्ययन करें और जीवन की हर एक छोटी बड़ी परिस्थिति के लिए प्रार्थना पूर्वक परमेश्वर के पास जाए।
ऐसा करने से एक मसीही की आंखें जीवन की कठिनाइयों पर नहीं परंतु परमेश्वर पर केंद्रित रहती हैं।
परमेश्वर को अपने जीवन का केंद्र बनाने के विषय में यह वीडियो देखें। -
A-39 मसीहत या शोहरत!
सृष्टि की शुरुआत से ही यह देखा गया है कि मनुष्य अपने पापमय स्वभाव के कारण ताकत और ऊंचे पद के पीछे भागता आया है। आज भी संसार में ताकत और ऊंचे पद को ही जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि माना जाता है।
परंतु परमेश्वर का वचन बाइबिल मनुष्य को नम्रता पूर्वक जीने के लिए प्रोत्साहित करता है। लेकिन खेद की बात है कि इसी नाम और शोहरत की भागदौड़ मसीहत में भी दिखाई देती है जिसकी वजह से मसीही अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य से भटक जाते हैं।
एक मसीही को यह नहीं भूलना चाहिए कि मानव-जाति के उद्धार के लिए परमेश्वर स्वयं स्वर्ग में अपना ऊंचा पद छोड़कर मानव रूप में आया जो येशु मसीह था l येशु ने अपने शिष्यों के पैर धोकर नम्रता से सेवा करने का सबसे बड़ा उदाहरण दिया l येशु ने संसार को सिखाया कि एक अगुवा (LEADER) का हृदय एक सेवक की तरह नम्र और दीन होना चाहिए l
ये सही है कि परमेश्वर अपनी योजना में एक मसीही को ऊंचा पद भी दे सकता है, परंतु मसीही को चाहिए कि वह नाम, शोहरत और ऊंचे पद के लोभ में न पड़े और येशु की तरह सेवाभाव का हृदय रखें।
मसीही जीवन में ऊंचे पद और अधिकार के प्रलोभन को समझने के लिए ये वीडियो देखें।
https://youtu.be/EjOx-cN-sKk
https://youtu.be/jINsrlplFT0
A-38 शैतान की युक्तियां - आत्मिक युद्ध।
हम जानते हैं कि प्रभु यीशु मसीह को अपना एकमात्र उद्धारकर्ता स्वीकार करना एक मनुष्य के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण फैसला होता है परंतु सफल मसीही जीवन जीने के लिए प्रभु यीशु मसीह को उद्धारकर्ता स्वीकार करने के बाद अपने जीवन में उसकी इच्छाओं को पूरा करना होता है। सफल मसीही जीवन जीने के लिए पवित्र शास्त्र बाइबल एक मसीही को आत्मिक युद्ध लड़ने के लिए प्रोत्साहित करती है।
लेकिन क्या होता है आत्मिक युद्ध?
आत्मिक युद्ध सांसारिक युद्ध की तरह मनुष्यों के खिलाफ नहीं परंतु शैतान और उसकी दुष्ट आत्माओं के खिलाफ होता है।
शैतान की सबसे बड़ी कामयाबी एक मनुष्य को प्रभु यीशु मसीह को, उसका उद्धारकर्ता स्वीकार करने से रोकने में होती है। जब शैतान इसमें कामयाब नहीं हो पाता तो वह अपने दूसरे लक्ष्य की तरफ दौड़ता है, जो होता है उस मसीही को प्रभु यीशु मसीह के राज्य के लिए इस्तेमाल होने से रोक कर उसका मसीही जीवन असफल करना। शैतान जीवन भर उस मसीही को रोकने के लिए अपनी युक्तियों का इस्तेमाल करता है।
एक मसीही सिर्फ और सिर्फ परमेश्वर के वचनों के द्वारा, परमेश्वर के हथियार बांधकर ही आत्मिक युद्ध लड़ सकता है और शैतान की युक्तियों से बच सकता है। शैतान की युक्तियों और आत्मिक युद्ध के बारे में और जानने के लिए ये वीडियो देखें।
https://youtu.be/YI9WRcOC2-8
https://youtu.be/aB8A2owwmZE
https://youtu.be/7nVSn5nWzm4
A-37 परमेश्वर केवल मन देखता है!
जब एक मनुष्य प्रभु यीशु मसीह को अपना एकमात्र उद्धारकर्ता स्वीकार करके अपने मसीही जीवन की शुरुआत करता है, तब वह पापमय संसार की शिक्षा का इनकार करके पवित्र शास्त्र बाइबल के वचनों के आधार पर अपना जीवन बिताने लगता है। मसीही जीवन के इस सफर में एक मसीही के मन में सच्चाई और सीधाई होने के कारण उसकी जीवन शैली सांसारिक लोगों से बहुत अलग होती है। सांसारिक लोग सच्चे परमेश्वर प्रभु यीशु मसीह से दूर होने के कारण एक मसीही को कभी नहीं समझ पाते और अक्सर उसे तुच्छ मानते हैं। परंतु मसीहीयो की प्रेरणा का स्त्रोत सांसारिक लोग नहीं बल्कि परमेश्वर होना चाहिए।
एक मसीही को सांसारिक लोगों के सताव के कारण कभी भी निराश नहीं होना चाहिए और हमेशा अपना मन परमेश्वर के वचन पर ही केंद्रित करना चाहिए - क्योंकि वचन पर चलने वाले मसीहियों से ही परमेश्वर प्रसन्न होता है। परमेश्वर ऐसे मसीहियों के मन जानता है और उसी आधार पर उन्हें सम्मान भी देता है।
A-36 आप किसकी भेड़ हैं? येशु या संसार ?
पवित्र आत्मा से सीखिए - संसार से नहीं l जब येशु की भेड़ संसार में खो जाती है तो वो सांसारिक भेड़ बन जाती है, फिर उसे अच्छे चरवाहे का शब्द सुनाई नहीं देता - https://www.youtube.com/watch?v=lL_O2Vfy0d0&t=158s
A-35 सबसे गरीब कौन?
सांसारिक अमीर या आत्मिक गरीब - देखिये इस विडियो में !
A-34 गंभीर ढिटाई के पाप !
जब एक मनुष्य स्वयं को पापी मानकर प्रभु यीशु मसीह के बलिदान से मिलने वाली क्षमा को स्वीकार कर लेता है और पापों से अपना नाता तोड़ लेता है, तब उसके मसीही जीवन की शुरुआत हो जाती है। यह उसके जीवन का सबसे अहम फैसला होता है। फिर जैसे-जैसे वो मसीही बाइबल के वचन के आधार पर अपना जीवन बिताने लगता है, वैसे वैसे वह परिपक्व मसीही बनता जाता है और जीवन में शांति और आनंद अनुभव करने लगता है। लेकिन मनुष्य में आदम से वंशानुगत मिले पाप का स्वभाव तो फिर भी होता है – जिसके कारण उससे कभी-कभी पाप हो जाना सामान्य बात है l
लेकिन स्थिति तब गंभीर होने लगती है जब मसीही अपने शरीर की लालसा को पूरी करने के लिए जानबूझकर उन्ही पापों को दोहराने लगता है l तब वे पाप उसकी आदत बनते जाते हैं और वे ढिटाई के पाप में परिवर्तित हो जाते हैं – मतलब वो ढीठ बनकर अपनी इच्छा से उन पापों को करने लगता है l यह स्थिति किसी भी मसीही के जीवन में आ सकती है फिर चाहे वह नया हो या परिपक्व l इस स्थिति को नियंत्रित करना एक मसीही के लिए बहुत अनिवार्य है नहीं तो वो परमेश्वर से दूर होता जाएगा और शैतान की युक्तियों का शिकार हो जाएगा l अपने जीवन को आदतन और ढिठाई के पापों से बचाए रखने के लिए ये वीडियो देखें।
A-33 छोटे जीवन में बड़ी उपलब्धियां !
मनुष्य अपने जीवन में कामयाबी पाने के लिए बहुत सी योजनाएं बनाता है ताकि वह अपने जीवन को भरपूर आनंद और सुख विलास से जी सके। परंतु सच तो यह है कि कोई भी मनुष्य यह नहीं जानता कि अगले ही पल उसके साथ क्या होने वाला है।
जीवन की इस भाग दौड़ में मनुष्य का जीवन कब समाप्त हो जाता है यह उसे खुद भी नहीं पता होता और उसकी सांसारिक कामयाबी उसके किसी काम की नहीं रहती। तो क्या इसका मतलब मनुष्य अपने जीवन को लेकर कभी कोई योजना न बनाए? - पवित्र शास्त्र बाइबल हमें यह सिखाती है कि मनुष्य का जीवन क्षण भर का है।
मनुष्य को अपने जीवन में सांसारिक उपलब्धियों से ज्यादा अनंतकाल के जीवन से संबंधित उपलब्धियों के विषय में सोचना चाहिए, और उसी के आधार पर जीना चाहिए, नहीं तो उसका जीवन व्यर्थ हो जाएगा। जब आप अनंतकाल के लिए जीते हैं, तो आपकी उपलब्धियां कभी नहीं मिटती, वो सदा के लिए होती हैं, और उसके प्रतिफल भी सदा के लिए होते हैं l अनंतकाल पर अपना जीवन केन्द्रित रखने के लिए आपको निरंतर वचन में बढ़ते रहना होगा l – इस विषय पर ये सभी विडियो देखिए -
A-32 आपकी संगति अच्छी है या बुरी?
इस दुनिया में विभिन्न प्रकार के लोग होते हैं जिन्हें सामाजिक मापदंड के आधार पर अच्छे या बुरे चरित्र वाला कहा जाता है l परंतु सही मायनों में, पवित्र शास्त्र बाइबल के आधार पर चलना ही अच्छा चरित्र होता है क्योंकि जब एक मनुष्य अपने पापों से मन फिराकर, प्रभु यीशु मसीह के बलिदान पर विश्वास करके, बाइबल के वचनों पर चलने के लिए तैयार हो जाता है, तब परमेश्वर द्वारा दिया गया पवित्र आत्मा उस मनुष्य के चरित्र को बदलने लगता है और उसे परमेश्वर के चरित्र में ढालने लगता है। अब क्योंकि उस मनुष्य के अंदर परमेश्वर के चरित्र के साथ-साथ आदम से मिला पाप का स्वभाव भी होता है, इसलिए कई बार जब वह मसीही वचन से दूर हो जाता है तो दुनिया की तरफ आकर्षित होने लगता है। बाइबल स्पष्ट रूप से सिखाती है कि एक मसीही को अविश्वासियों की बुरी संगति में नहीं चलना चाहिए। हालांकि यहां संगति न करने का मतलब यह नहीं है कि किसी भी अविश्वासी से बात या दोस्ती नहीं करनी चाहिए, लेकिन बाइबल सिखाती है कि एक मसीही को अविश्वासीयों की उन बुरी आदतों से सतर्क रहना चाहिए जहां उसे बाइबल के मूल्यों के साथ समझौता करना पड़े, फिर चाहे वह कितना ही प्रिय दोस्त या परिवार वाला क्यों न हो – क्योंकि उनके साथ अधिक घुलने-मिलने से मसीही के अन्दर बसा आदम के पाप का स्वभाव उस पर हावी होने लगता है और उसकी आत्मिक उन्नति रुक जाती है, और बहुत जल्दी वो वापिस पाप में फिसलने लगता है l इस विषय को विस्तार से समझने के लिए ये वीडियो देखें।
https://youtu.be/Lj51cPxWpjE
A-31 परमेश्वर को सच्चे मन से कैसे ढूंढें?
जब एक मनुष्य अपने पापों से मन फिराकर सच्चे परमेश्वर प्रभु यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार कर लेता है तब उसके आत्मिक जीवन का नया सफर आरंभ हो जाता है। इस नए आत्मिक सफर में उस नए विश्वासी की सबसे पहली इच्छा यह होती है, कि जैसे उसने अपने पापों की क्षमा मांग कर प्रभु यीशु मसीह के बलिदान पर विश्वास करके उद्धार पाया वैसे ही उसके घर वाले और प्रियजन भी पाएं, इसलिए वह दिन रात उनके लिए प्रार्थना करने लगता है। आम तौर पर वह नया विश्वासी काफी समय तक प्रार्थना करने के बाद जब यह देखता है कि उसके घर वाले और प्रियजन प्रभु यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं, तब वह बहुत निराश और उदास हो जाता है। इस कारण कई विश्वासी अपने परिवार वालों के अविश्वास का कारण नहीं समझ पाते। परंतु पवित्र शास्त्र बाइबल हमें स्पष्ट तौर पर इसका कारण बताती है, और वह है – एक अविश्वासी का सच्चे परमेश्वर को ढूंढने में कोई दिलचस्पी या इच्छा का ना होना। अब इसका कारण कुछ भी हो सकता है जैसे अपने ही धर्म पर अहंकार, या विज्ञान पर अधिक विश्वास इत्यादि। लेकिन बाइबल हमें सिखाती है कि इस संसार का कोई भी मनुष्य, भले ही वो किसी भी धर्म से हो या फिर नास्तिक हो, अगर वो सच्चे मन से परमेश्वर को ढूंढने की कोशिश करेगा तो परमेश्वर स्वयं को उस पर जरूर जाहिर करेगा। इस विषय को अच्छी तरह समझने के लिए ये सभी वीडिओ देखें।
https://youtu.be/Ma1L8J20QRg
A-30 सकरा मार्ग या चौड़ा मार्ग?
पवित्र शास्त्र बाइबल हमें सिखाती है कि मनुष्य, जो परमेश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है, आरम्भ में परमेश्वर के साथ संगति करता था, परंतु परमेश्वर की आज्ञा ना मानने के कारण मनुष्य ने पहला पाप किया और अपने पापमय स्वभाव के कारण वह परमेश्वर से दूर हो गया। लेकिन परमेश्वर ने अपने प्रेम के कारण मनुष्य से दोबारा संगति स्थापित करने के लिए एक मार्ग निकाला। वह मार्ग है अपने पापों से मन फिराकर प्रभु यीशु मसीह के बलिदान पर विश्वास करना और उसके बताए रास्ते यानी पवित्र शास्त्र बाइबल के वचनों पर चलना। बाइबल साफ तौर पर हमें यह बताती है कि मनुष्य को अनंतकाल का जीवन देने वाला यह मार्ग एक सकरा मार्ग है क्योंकि अपने पापों से मन फिराकर परमेश्वर के रास्ते पर चलने वाले लोग इस संसार में बहुत कम हैं। संसार में ज्यादातर लोग अपनी शारीरिक अभिलाषाओं के कारण अपने ही चौड़े मार्ग पर चलना चाहते हैं जो उन्हें विनाश की ओर ले जाता है। बाइबल हमें यह भी सिखाती है कि जो मनुष्य परमेश्वर के सकरे मार्ग को चुनता है, परमेश्वर उसका मार्गदर्शन करता है जिससे वह इस जीवन में शांति और आनंद पाता है और मृत्यु के पश्चात स्वर्ग जाता है। अब क्योंकि परमेश्वर प्रेम का परमेश्वर है, इसलिए वह मनुष्य को स्वयं से चुनने का अधिकार देता है - फिर चाहे मनुष्य परमेश्वर द्वारा आशीषित सकरा मार्ग चुने या फिर संसार का विनाशकारी चौड़ा मार्ग l परमेश्वर के सकरे मार्ग के विषय में और अच्छे से समझने के लिए ये वीडियो देखें।
A-29 क्या मांस खाना पाप है?
इसमें कोई संदेह की बात नहीं है कि दुनिया के सभी प्राणियों में से परमेश्वर ने मनुष्य को अपने ही स्वरूप में सबसे बुद्धिमान प्राणी बनाया है। सभी प्राणियों में से सिर्फ मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अपनी बुद्धि के कारण आपस में तर्क संवाद कर सकता है। परंतु यह बहुत खेदजनक है, कि जब हम बात करते हैं परमेश्वर की बुद्धि, यानि पवित्र शास्त्र बाइबल के सत्य वचनों की, तब मनुष्य अपने पापमय स्वभाव के कारण और परमेश्वर की बुद्धि न होने की वजह से तर्कहीन हो जाता है, जिसका उदाहरण यह है कि आज कई मनुष्य मांस खाने को अनैतिक और पाप समझता हैं। सच तो यह है कि पाप हमेशा बुरे परिणाम ही लाता है, लेकिन ऐसा कोई भी उदाहरण नहीं है की सही विधि और सही तरीके से मांस खाए जाने पर किसी का नुकसान हुआ हो। हालांकि बाइबल के आधार पर मांस खाना अनिवार्य नहीं है, और मनुष्य अपनी इच्छा से शाकाहारी भी रह सकता है, परंतु सही मात्रा और सही तरीके से मांस खाना मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए अच्छा भी है। मनुष्य को केवल यह ध्यान रखना है कि किसी भी चीज की अधिकता, चाहे शाकाहारी चाहे मांसाहारी, शरीर के लिए नुकसानदायक होती है। इस विषय को और गहराई से समझने के लिए ये वीडियो देखें।
A-28 परमेश्वर की दीनता और नम्रता!
पवित्र शास्त्र बाइबल हमें सिखाती है कि आदि में परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया। जाहिर है कि परमेश्वर ने मनुष्य में अपने कई अच्छे गुण जैसे नम्रता और दीनता भी डाले होंगे। परंतु मनुष्य ने परमेश्वर के खिलाफ पाप करके अपने अंदर क्रोध, घमंड, लालच और क्रूरता जैसे अन्य स्वभाव भी डाल लिए। अपने पापमय स्वभाव के कारण मनुष्य ने परमेश्वर की नम्रता और दीनता जैसे गुणों से भी नाता तोड़ लिया। आज जिस स्वभाव को लोग नम्रता और दीनता समझते हैं असल में वह सिर्फ एक ऊपरी परत है, मात्र एक दिखावा l उन्हें थोड़ा सा कुरेदो तो असलियत सामने आ जाती है – वही अहंकार, वही क्रोध, वही नफरत, और वही लालच l दुःख की बात तो ये है कि आज मसीहियों ने भी ये दिखावे की नम्रता और दीनता का चोला ओढ़ लिया है - जिसमें बाइबल के वचनों की सच्चाई से ज्यादा सिर्फ सांसारिक अच्छाई झलकती है। और इस दिखावे की अच्छाई को बनाए रखने के लिए आज का मसीही बाइबिल को एक तरफ रखकर संसार के साथ समझौता कर लेता है l सही मायनों में परमेश्वर की नम्रता, दीनता और सच्चाई - सिर्फ और सिर्फ पवित्र शास्त्र बाइबल के वचनों पर चलकर ही पाई जा सकती है। परमेश्वर की नम्रता और संसार की नम्रता में फरक जानने के लिए ये वीडियो देखें।
A-27 आपके लिए परमेश्वर की योजना!
परमेश्वर के सत्य वचन पवित्र शास्त्र बाइबल के आधार पर - जिस दिन से पहले मनुष्य आदम ने परमेश्वर की आज्ञा ना मानकर इस संसार का पहला पाप किया, उसी दिन से मनुष्य में पाप का स्वभाव आ गया जिसके कारण उसकी संगति परमेश्वर से टूट गई और वह परमेश्वर के मार्ग से हटकर अपने ही मार्ग पर चलने लगा। इसी कारण आज के मनुष्य की कल्पनाएं परमेश्वर की योजनाओं से मेल नहीं खाती। आज का मनुष्य परमेश्वर को छोड़ संसार की अस्थाई उपलब्धियों पर मन लगाता है जो उसके जीवन के साथ ही समाप्त हो जाती हैं। लेकिन बाइबल हमें सिखाती है, कि परमेश्वर की योजनाएं मनुष्य की योजनाओं से बहुत उत्तम होती हैं। परमेश्वर की योजनाओं पर चलने वाला मनुष्य शारीरिक जीवन का आनंद भी उठाता है, और अनंतकाल की उपलब्धियां भी प्राप्त करता है। लेकिन यहां सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि “मनुष्य अपने जीवन के लिए परमेश्वर की योजनाओं को कैसे जान सकता है?” ये तभी संभव है जब मनुष्य अपने पापों से मन फिराकर प्रभु यीशु मसीह के बलिदान पर विश्वास करे और उसके बताए मार्ग बाइबल के वचनों पर चले – ताकि सच्चे परमेश्वर से उसका एक संबंध बन सके l अपने जीवन में परमेश्वर की योजना को समझने के लिए ये सभी वीडियो देखें।
A-26 बच्चे और मंदबुध्दि कहाँ जाते हैं?
जब एक मनुष्य का सच्चे परमेश्वर प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करके उद्धार हो जाता है, तब उसके जीवन में परमेश्वर का आनंद तो होता ही है लेकिन साथ में उसे अपने परिवार के उद्धार की चिंता भी सताती है। इस दौरान मसीहत के सफर में उसके मन में कई सवाल उत्पन्न होते हैं, जिनमें से एक है कि "क्या बच्चे और मंदबुद्धि लोग मृत्यु के बाद स्वर्ग जाते हैं या नहीं?" अब क्योंकि उद्धार सिर्फ और सिर्फ अपने पापों की क्षमा मांग कर और प्रभु यीशु मसीह के बलिदान पर विश्वास करके ही पाया जाता है, एक नया मसीही कई बार चिंतित हो जाता है, क्योंकि बच्चे और मन बुद्धि लोगों का दिमाग इतना विकसित नहीं हुआ होता कि वह पाप और पवित्रता में फर्क कर सकें। लेकिन पवित्र शास्त्र बाइबल हमें सिखाती है कि परमेश्वर न्याय करने वाला परमेश्वर है। परमेश्वर अपने न्याय के आधार पर बच्चों और मंदबुध्दि लोगों की मृत्यु होने पर उन्हें जवाबदेय नहीं ठहराता और वे सीधे परमेश्वर के पास स्वर्ग चले जाते हैं। इस विषय में और जानने के लिए यह वीडियो देखें।
A-25 स्वर्ग और नरक वास्तविक जगह है।
आज आधुनिक मनुष्य अपने पापमय स्वभाव के कारण, परमेश्वर के ज्ञान को तुच्छ समझकर अपने ज्ञान पर ज्यादा विश्वास करता है। आज ज्यादातर लोग स्वर्ग और नर्क जैसी वास्तविक जगह को काल्पनिक मानते हैं क्योंकि वे सच्चे परमेश्वर और उसके सच्चे वचन, पवित्र शास्त्र बाइबल से दूर हैं। हालांकि मनुष्य के बनाए हुए धर्मों में भी स्वर्ग और नर्क जैसी जगहों का जिक्र है, लेकिन उन धर्मों में सच्चाई ना होने के कारण उसके ज्यादातर अनुयाई उस पर पूरी तरह विश्वास नहीं कर पाते। पवित्र शास्त्र बाइबल हमें सिखाती है कि परमेश्वर ने मनुष्य को नर्क में अनंतकाल की मृत्यु से बचाने और स्वर्ग में अनंतकाल का जीवन देने के लिए - 2000 साल पहले मनुष्य के सभी पापों को अपने ऊपर लेकर क्रूस पर अपना बलिदान दे दिया, जिसके लिए आवश्यक है मनुष्य उस बलिदान पर विश्वास करके पापों से अपना मन फिराए। स्वर्ग और नर्क के वास्तविक अस्तित्व के बारे में विस्तार से जानने के लिए ये वीडियो देखें।
A-24 आप येशु से छिप नहीं सकते।
जब एक मनुष्य एक मात्र सच्चे परमेश्वर प्रभु यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार कर लेता है तो उसके जीवन में उतार-चढ़ाव होना बहुत आम बात है, क्योंकि उसका जीवन पवित्र शास्त्र बाइबल में लिखे वचनों के आधार पर चलने लगता है, जो पापमय संसार की शिक्षा के विपरीत हैं। हालांकि जीवन में परमेश्वर होने के कारण एक मसीही अपने दुखों में भी आनंदित तो रहता है, लेकिन फिर भी जीवन में कई बारी ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं जिनमें एक मसीही को निराशा के दौर से गुजरना पड़ता है। ऐसे समय में एक मसीही अपने पापमय स्वभाव के कारण सोचने लगता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु मसीह भी उसकी मदद नहीं कर सकता और वह येशु से दूर भागने लगता है। लेकिन बाइबल हमें सिखाती है कि येशु तो सर्वज्ञानी और सर्वव्यापी है l इसलिए एक मसीही चाहकर भी येशु से दूर नहीं भाग सकता क्योंकि वो जहाँ भी जाएगा येशु से ही टकराएगा l वो कभी येशु से छुप नहीं सकता क्योंकि येशु तो हर जगह उसे देख सकता है l येशु हमसे इतना प्रेम करता है कि उसका वादा है कि जीवन की किसी भी परिस्थिति में ना तो वो हमें कभी छोड़ेगा और ना ही कभी हमें त्यागेगा l इस विषय को गहराई से समझने के लिए यह वीडियो देखें।
A-23 सिर्फ यीशु ही मार्ग सत्य और जीवन है।
जब सृष्टि की शुरुआत में ही मनुष्य ने परमेश्वर की आज्ञा ना मानकर परमेश्वर से अपना संबंध तोड़ लिया, तब परमेश्वर ने अपने प्रेम के कारण मनुष्य से अपना संबंध दोबारा स्थापित करने के लिए एक मार्ग निकाला - जो था मनुष्य के पापों का दंड भुगतने के लिए भविष्य में स्वयं का बलिदान (जिसे प्रभु यीशु मसीह ने आज से 2000 साल पहले पूरा कर दिया)। लेकिन मनुष्य ने अपनी अज्ञानता और पापमय स्वभाव के कारण परमेश्वर तक पहुंचने के अपने अलग-अलग मार्ग निकाल लिए, जिसका उदाहरण है आज संसार में मौजूद अनेकानेक धर्म। आज कोई तो ये कहता है कि परमेश्वर तक पहुंचने के कई मार्ग हैं, तो कोई ये कहता है कि परमेश्वर तो एक ही है, लेकिन उसके रूप अनेक हैं। लेकिन पवित्र शास्त्र बाइबल स्पष्ट रूप से सिखाती है कि परमेश्वर ने मनुष्य को स्वर्ग में अनंतकाल का जीवन देने के लिए केवल एक ही मार्ग निकाला - जो है, अपने पापों से मन फिराकर यीशु मसीह के बलिदान पर विश्वास करना और उसके बताये मार्ग बाइबिल पर चलने को तैयार हो जाना l इसके अलावा और कोई सत्य नहीं है। इस विषय को स्पष्ट रूप से जानने के लिए ये वीडियो देखें।
A-22 मसीहियों का उठा लिया जाना - रैपचर
पवित्र शास्त्र बाइबल परमेश्वर का ऐसा सत्य वचन है जो ना सिर्फ हमें भूतकाल और वर्तमान काल के बारे में, बल्कि हमें भविष्य में होने वाली आलौकिक घटनाओं के बारे में भी बताता है, जिनमें से एक है अंतिम समय में प्रभु यीशु मसीह के द्वारा सभी मसीहियों का बादलों में उठा लिया जाना – जिसको (रैपचर – RAPTURE) भी कहा जाता है। जहां एक तरफ आज का आधुनिक समाज परमेश्वर से ज्यादा विज्ञान पर भरोसा करता है, वहीं दूसरी तरफ एक मसीही की सबसे बड़ी आशा है प्रभु यीशु मसीह का बादलों पर आना और मसीहियों को येशु से मिलने के लिए बादलों में उठा लिया जाना l एक मसीही को यह नहीं भूलना चाहिए कि जब हम बात करते हैं सृष्टिकर्ता परमेश्वर की जिसने सब कुछ बनाया है, तो अलौकिक घटनाओं का होना कोई बड़ी बात नहीं है। परमेश्वर के द्वारा मसीहियों के उठा लिए जाने के बारे में और जानने के लिए ये वीडियो देखें।
A-21 बाइबिल में “किस्मत” कुछ नहीं।
मनुष्य का परमेश्वर से दूर होने का मतलब है परमेश्वर के ज्ञान से भी दूर होना, जिसका प्रमुख उदाहरण है पापमय संसार का “किस्मत” जैसे सिद्धांत पर विश्वास करना, जिसको मनुष्य परमेश्वर का विधान समझता है। यह ऐसा सिद्धांत है जो परमेश्वर को पक्षपाती बना देता है क्योंकि आज का आधुनिक समाज - सांसारिक सफलता को अच्छी किस्मत और असफलता को बुरी किस्मत मानता है। तो क्या ऐसा संभव है कि परमेश्वर, जो हमेशा न्याय करता है, किसी को पहले से ही सफलता के लिए और किसी को असफलता के लिए बनाता है? पवित्र शास्त्र बाइबल के आधार पर सृष्टिकर्ता परमेश्वर न्याय करने वाला परमेश्वर है जो सभी मनुष्यों को एक समान देखता है l परमेश्वर में हम पक्षपात का स्वभाव नहीं जोड़ सकते क्योंकि पक्षपात पाप के स्वभाव से जन्म लिया हुआ सिद्धांत है। परमेश्वर की निष्पक्षता को और अच्छे से जाने के लिए यह वीडियो देखें।
https://youtu.be/gXBuxuCo-sQ
A-20 स्वर्ग का मार्ग - अनुग्रह या कर्म?
मनुष्य अच्छे कर्म क्यों करता है? क्या अच्छे कर्मों से हमारा और परमेश्वर का निजी संबंध बन पाता है? क्या हमारे अच्छे कर्म, बुरे कर्मों को ढक सकते हैं? दुनिया का हर एक धर्म, जो मनुष्यों के द्वारा बनाया गया है, यही सिखाता है कि स्वर्ग जाना या परमेश्वर को खुश करना अच्छे कर्मों से ही किया जा सकता है। परंतु परमेश्वर के द्वारा दिए गए पवित्र शास्त्र बाइबल के सत्य वचन हमें यह सिखाते हैं, कि मनुष्य अपने अच्छे कर्मों के कारण ना तो उद्धार पा सकता है और ना ही परमेश्वर से अपना संबंध स्थापित कर सकता है। तो क्या इसका मतलब यह है कि हम अच्छे कर्म ना करें? नहीं, अच्छे कर्म तो हर मनुष्य को निस्वार्थ भाव से करने ही चाहिए क्योंकि परमेश्वर ने मनुष्य को अच्छे कर्मों के लिए ही बनाया है। परंतु परमेश्वर से व्यक्तिगत संबंध स्थापित करने के लिए, और मृत्यु के बाद अपने पापमय जीवन के कारण नर्क जाने से बचने के लिए, मनुष्य को परमेश्वर का अनुग्रह चाहिए, जो यीशु मसीह के बलिदान पर विश्वास करके ही पाया जा सकता है क्योंकि येशु ने ही मानव जाति के पापों का दंड भुगता। यीशु मसीह के बलिदान द्वारा परमेश्वर का अनुग्रह पाने के लिए ये वीडियो देखें।
A-19 अन्यान्य भाषा का दान
पवित्र शास्त्र बाइबल हमें यह सिखाती है कि परमेश्वर कलीसिया की उन्नति के लिए मसीहियों को आत्मिक दान भी देता है l आरंभिक कलीसियाओं में “अन्य-अन्य भाषा” में बोलने का दान भी था जिसे “अन्यान्य भाषा” भी कहते हैं l जिसको ये दान मिलता था, वो ऐसी भाषाओं में बोल सकता था जो उसने पहले कभी सीखी नहीं होती थी l ये दान आज कल के चर्चों में बोली जाने वाली अस्पष्ट, बेतुकी, अर्थहीन भाषा से बिलकुल भिन्न था क्योंकि अलग-अलग भाषाओं में बोलने का दान वो था जिसमे सुनने वालों को बोलने वाले की भाषा भली-भाँती समझ आ जाती थी l लेकिन ये एक “चिन्ह दान” था – SIGN GIFT – जो परमेश्वर के “दास” और उसके “सन्देश” की पुष्टि करने के लिए दिया जाता थाl लेकिन बाइबिल पूरी लिखी जाने के बाद अन्यान्य भाषा के दान की आवश्यकता समाप्त हो गई l इसलिए ये बहुत संभव है कि आज के समय में यह दान किसी को नहीं मिलता, क्योंकि चर्च के इतिहास में पहली सदी के बाद से ही अन्यान्य भाषा का कोई ज़िक्र नहीं है l परंतु ये खेद जनक है कि गलत सिध्दांतों की वजह से आज भी कलीसियाओं में इस दान के नाम पर बेतुकी, अनजान, अर्थहीन भाषा बडबडाई जाती है जिससे मसीहियों में केवल अंधविश्वास बढ़ता है और उनकी कोई आत्मिक उन्नति नहीं होती l अन्यान्य भाषा के दान के बारे में अधिक विस्तार से जानने के लिए ये वीडिओ देखें।
A-18 यीशु कठिनाइयों में भी हमारे साथ है!
सुख और दुख मनुष्य के जीवन का हिस्सा है इसीलिए मनुष्य के जीवन में कठिनाइयों का आना आम बात है, फिर चाहे वह मसीही हो या गैर मसीही। लेकिन पवित्र शास्त्र बाइबल हमें यह सिखाती है कि एक मसीही के जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी यीशु मसीह हमेशा उसके साथ रहता है और उन परिस्थितियों से बाहर निकलने में उसकी मदद करता है। प्रभु यीशु मसीह के मार्ग पर चलकर एक मसीही अपने जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी आनंदित रहता है। जीवन की परेशानियों और निराशा से बाहर निकलने के विषय में ये वीडिओ देखें।
A-17 येशु सब रिश्तों से ऊपर है!
पवित्र शास्त्र बाइबल में लिखे हुए परमेश्वर के वचन ऐसा सत्य हैं जो दुनिया की कोई भी शिक्षा या धर्म नहीं सिखाते। जहां एक तरफ दुनिया की शिक्षा और ज्ञान मन को भाने वाली बातें करते हैं वहीं दूसरी तरफ बाइबल का उद्देश्य मनुष्य को सत्य का बोध कराना है। बाइबल हमें कई जगहों पर यह बताती है कि एक मसीही के जीवन में प्रभु यीशु मसीह(जो एकमात्र परमेश्वर है) से बड़ा स्थान किसी का नहीं होना चाहिए। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि एक मसीही अपने सारे रिश्तो को त्याग दें, बल्कि अपनी सभी पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करना तो एक मसीही का कर्तव्य है। अनंत कालीन परमेश्वर को अपने जीवन में कैसे प्राथमिकता दी जाए यह जानने के लिए यह video देखिए।
https://youtu.be/F2a6MPTzu3M
A-16 जीवन में पवित्रता का अर्थ क्या है?
पवित्रता क्या होती है? पवित्र शास्त्र बाइबल के आधार पर पवित्रता एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें कोई पाप नहीं होता और ऐसी स्थिति परमेश्वर के अलावा किसी की नहीं हो सकती। इसीलिए प्रभु यीशु मसीह ने जो पवित्र है, मनुष्य रूप में आकर मनुष्य के उद्धार के लिए क्रूस पर अपना बलिदान दिया क्योंकि मनुष्य के पापों का भुगतान पवित्र परमेश्वर के अलावा कोई नहीं चुका सकता था। दूसरी तरफ बाइबल हमें यह भी सिखाती है कि मसीही होने के नाते हमें परमेश्वर की तरह पवित्र बनना है, यानी हमें पवित्रता का रास्ता अपनाना है, ताकि परमेश्वर हमें धीरे-धीरे यीशु मसीह की समानता में बनाता जाए। पवित्रता का रास्ता एक मसीही सिर्फ और सिर्फ बाइबल के वचनों पर चलकर ही पा सकता है। मसीही जीवन में पवित्रता का क्या महत्व है, यह जानने के लिए ये video देखिए।
A-15 हमारा सहायक पवित्र आत्मा !
मनुष्य की जिंदगी में काफी बार ऐसी परिस्थितियां आती है जहां उसे सहायता की जरूरत होती है, उस वक्त किसी के द्वारा सहायता पाकर वह बहुत आभारी हो जाता है और आनंद से भर जाता है। सोचिए कैसा होगा अगर मनुष्य के पास हमेशा उसकी मदद करने को एक सहायक उपस्थित हो। पवित्र शास्त्र बाइबल हमें यह सिखाती है कि जब कोई मनुष्य अपने पापों से मन फिराकर यीशु मसीह के बलिदान पर विश्वास करता है, और उसके बताए रास्ते यानि बाइबल के वचनों पर चलने को तैयार हो जाता है तो परमेश्वर उसे हमेशा के लिए सहायक के तौर पर पवित्र आत्मा (परमेश्वर का आत्मा) देता है, जो जीवन भर सत्य के रास्ते पर चलने के लिए उसका मार्गदर्शन करता है, उसकी सुरक्षा करता है और उसे परमेश्वर के और करीब लाता है, इस प्रकार मसीही हमेशा आनंद से भरा रहता है। पवित्र आत्मा परमेश्वर उसके कार्यों को और गहराई से जानने के लिए यह videos देखें।
A-14 धन या परमेश्वर में से एक को चुनें !
सृष्टिकर्ता महान परमेश्वर यीशु मसीह की तुलना इस दुनिया की किसी भी चीज से नहीं की जा सकती, लेकिन क्योंकि परमेश्वर जानता है कि मनुष्य इस पाप से भरी दुनिया में धन को बहुत अहमियत देता है, उसने पवित्र शास्त्र बाइबल में अपनी तुलना धन से ही की। हांलाकि परमेश्वर मनुष्य की सारी जरूरतों को पूरी करता है, पवित्र शास्त्र बाइबल हमें यह सिखाती है कि मनुष्य अपने जीवन में सबसे ऊंचा स्थान धन या परमेश्वर में से केवल एक ही को दे सकता है, क्योंकि उसका ध्यान वही केंद्रित रहेगा जिसको वह सबसे ज्यादा अहमियत देगा। आम तौर सभी धर्म यही सिखाते हैं कि परमेश्वर तुम्हे धन की आशीष देगा, लेकिन मसीहत “धर्म” नहीं है, बल्कि सच्चे परमेश्वर से रिश्ता हैl नाशवान धन और अविनाशी परमेश्वर के बारे में गहराई से जानने के लिए यह videos देखें।
https://youtu.be/sRBf3fmDjRQ
A-13 अनंत जीवन / स्वर्ग कैसे पायें?
पवित्र शास्त्र बाइबल हमें अनंत जीवन के बारे में ऐसा सत्य बताती है जो दुनिया का और कोई शास्त्र नहीं बताता। जहाँ दुनिया का लगभग हर एक शास्त्र यह सिखाता है कि अनंत जीवन / स्वर्ग / मोक्ष – ये सब “अच्छे कर्मो” से कमाया जा सकता है, वहाँ बाइबल हमें सिखाती है कि अनंत जीवन / स्वर्ग / उध्दार – “अच्छे कर्मों” से नहीं कमाया जा सकता, परंतु अपने पापों से मन फिराकर, यीशु मसीह के बलिदान से मिलने वाली क्षमा पर विश्वास करने से पाया जाता है, जो परमेश्वर का दान है। साथ ही में बाइबल हमें यह भी आश्वासन देती है कि सच्चे मन से येशु मसीह के बलिदान पर विश्वास करके पाया गया अनंत जीवन बरकरार रहता है और उसे परमेश्वर के हाथ से कोई छीन नहीं सकता। अनंत जीवन और उसके बरकरार रहने के विषय में ये वीडिओ देखिए।
https://youtu.be/sc46EQQDtew
A-12 पति-पत्नी का रिश्ता अटूट हैl
इसमें कोई दो राय नहीं है कि पवित्र शास्त्र बाइबल में परमेश्वर का वचन सत्य है और दुनिया की शिक्षा के विपरीत है। बाइबल हमें पति और पत्नी के रिश्ते की ऐसी अहमियत सिखाती है जो दुनिया का और कोई शास्त्र या शिक्षा नहीं सिखाती। परमेश्वर ने दुनिया का सबसे पहला रिश्ता नर और नारी यानी पति और पत्नी का बनाया और उसे दुनिया के अन्य सभी रिश्तो से ऊपर ठहराया। कोई भी मसीही पति और पत्नी जो परमेश्वर के वचन का पालन करते हैं और बाइबल के अनुसार अपने रिश्ते को बनाए रखते हैं, वह ना सिर्फ परमेश्वर के लिए फलवंत साबित होते हैं बल्कि अपने जीवन में आशीष में भी पाते हैं। बाइबल के आधार पर पति और पत्नी का रिश्ता कैसा होना चाहिए यह जानने के लिए यह videos देखिए।
A-11 बच्चों को वचन में बड़ा करें !
बच्चे गीली मिट्टी के समान होते हैं। उन्हें जैसा आकार दिया जाए वे वैसा ही बन जाते हैं। पवित्र शास्त्र बाइबल हमें प्रोत्साहित करती है कि हम अपने बच्चों को शुरुआत से ही परमेश्वर का वचन सिखाएं, ताकि वे दुनिया के विनाशकारी प्रलोभनों में न फंस जाएं। ऐसा करने से बच्चे बड़े होकर परमेश्वर के लिए फलवंत होते हैं और अपने जीवन के अंत तक परमेश्वर के मार्ग से नहीं भटकते। ये VIDEOS देखिए और जानिए कि बच्चों को परमेश्वर के वचन में कैसे बड़ा किया जाए।
A-10 वचन से दूर कभी न जाएँ !
पवित्र शास्त्र बाइबल के वचन मसीही जीवन की नींव है, जो एक मसीही को पापमय संसार से अलग करते हैं। जिस प्रकार मनुष्य की शारीरिक उन्नति के लिए भोजन जरूरी है उसी प्रकार मनुष्य की आत्मिक उन्नति के लिए बाइबल के वचन जरूरी है। इसलिए एक मसीही के लिए यह आवश्यक है, कि वह बाइबल के वचनों मैं निरंतर बना रहे, उन पर चिंतन करे और अपने जीवन में लागू करता रहे। परंतु यदि एक मसीही के जीवन में परमेश्वर के वचन की प्राथमिकता नहीं है तो यह बहुत संभव है कि धीरे-धीरे परमेश्वर से उसका संबंध और विश्वास कमजोर पड़ता जाएगा और वह दूर चला जाएगा। मसीही जीवन में परमेश्वर के वचन की प्राथमिकता को जानने के लिए यह videos देखें।
A-9 जवानी का सही इस्तेमाल करें !
मनुष्य के जीवन में युवावस्था एक महत्वपूर्ण अवस्था है। जीवन के इस समय में एक युवा या युवती साहसी, उत्सुक, रचनात्मक और शारीरिक रूप से मजबूत भी होते हैं। और यही वह समय है जब एक युवा व्यक्ति के लिए इस पापमय दुनिया के प्रलोभनों में पड़ना बहुत आसान भी हो जाता है। पवित्र शास्त्र बाइबल युवावस्था पर विशेष महत्व देती है और युवाओं को परमेश्वर के वचनों के आधार पर चलना सिखाती है ताकि उनका जीवन अंधकार से बच सकें। ये videos देखिए और जानिए कि कैसे आप अपनी युवावस्था में परमेश्वर के लिए इस्तेमाल हो सकते हैं।
A-8 सुसमाचार का प्रचार नित्य करें
आम तौर पर हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन में हम एक दूसरे के साथ समाचारों का आदान-प्रदान करते हैं। कभी वे समाचार खुशियां लाते हैं तो कभी दुख। पवित्र शास्त्र बाइबल के अनुसार मनुष्य जाति के उद्धार के लिए प्रभु यीशु मसीह का इस दुनिया में जन्म लेना, क्रूस पर अपना बलिदान देना, और तीसरे दिन जीवित हो जाना इस दुनिया का सबसे बड़ा खुशी का समाचार है जिसे हम सुसमाचार कहते हैं, इसलिए एक मसीही के लिए जरूरी है कि जैसे बाइबल का सुसमाचार उसे मिला वैसे ही वह दूसरों को भी प्रचार करें। सुसमाचार का प्रचार कैसे किया जाए यह जानने के लिए हमारे यह videos देखें।
A-7 सताव तो मसीही जीवन का हिस्सा है !
कई लोग अपने जीवन में अपने अपराधों के कारण सताव सहते हैं लेकिन सच्चाई के रास्ते पर चलकर सताव का सामना करना बहुत चुनौतीपूर्ण हो सकता है। ऐसे लोग जो बाइबल के वचनों पर चलकर परमेश्वर यीशु मसीह के लिए सताव सहते हैं परमेश्वर उन्हें धन्य कहता है और उन्हें स्वर्ग का अधिकारी ठहराता है और सताव के बावजूद उन्हें शांति देता है। मसीही जीवन में सताव के बारे में जानने के लिए हमारी यह videos जरूर देखें।
A-6 यहोवा का भय - बुध्दि है !
आज की आधुनिक दुनिया में बुद्धि को इस बात से मापा जाता है कि आदमी कितना सफल है। हांलाकि परमेश्वर का वचन बाइबल - दुनिया की शिक्षा से अलग है, और हमें यह सिखाता है कि बुद्धि की शुरुआत ही परमेश्वर के भय मानने से होती है। ऐसी बुद्धि की बात संसार के लिए मूर्खता है। क्या होता है परमेश्वर का भय और बुद्धि? जानने के लिए इन videos को देखें।
A-5 शरीर की अभिलाषाएं !
मनुष्य का जीवन हमेशा शारीरिक अभिलाषाओं से घिरा रहता है। इसलिए जरूरी है एक मसीही के लिए परमेश्वर के वचन के आधार पर अपना जीवन बिताना।
जरूरी है जैसा पुत्र यीशु मसीह आज्ञाकारी था वैसे ही हम भी परमेश्वर के लिए आज्ञाकारी बने।मनुष्य की अभिलाएं, और उनसे कैसे बचा जाए - इस विषय को गहराई से समझने के लिए ये videos जरूर देखें
https://youtu.be/EdM30T-ZaiE
A-4 हमारा जीवन क्रूस पर होना चाहिए !
प्रभु यीशु मसीह द्वारा दिए गए क्रूस पर बलिदान की कोई तुलना नहीं की जा सकती। क्रूस का बलिदान हमें दर्शाता है कि कैसे परमेश्वर ने जगत के लोगों के लिए अपने आप को शून्य कर दिया। इसलिए जरूरी है कि यीशु मसीह के रास्ते पर चलने के लिए हम भी अपने जीवन को परमेश्वर के लिए शून्य करें, अपने आप का इनकार करें और हमारा रोज का जीवन परमेश्वर की इच्छा पर और वचन के आधार पर चले। - क्रूस के जीवन को समझने के लिए ये विडियो देखिये - https://www.youtube.com/watch?v=ss_nC_K-V_E
A-3 : प्रार्थना - PRAYER
मसीही जीवन का मुख्य आधार - प्रार्थना l सच्चे हृदय से की गई प्रार्थना दर्शाती है एक मसीही का सच्चा विश्वास और येशु के प्रति समर्पित जीवन l अगर एक मसीही का जीवन निःस्वार्थ प्रार्थना पर निर्भर है, तो उसका मतलब है कि वो मसीही प्रभु की इच्छा में जी रहा है l प्रार्थना के विषय में YouTube पर हमारे ये सभी सन्देश देखकर अपने "प्रार्थना- जीवन को बढ़ाइए" - प्रार्थना (PRAYER) से सम्बंधित सभी सन्देश -
https://www.youtube.com/watch?v=hNRvseGk_SY&t=25s
https://www.youtube.com/watch?v=NJpSHJKaYRM&t=693s
https://www.youtube.com/watch?v=hgbETycrcvY&t=111s
https://www.youtube.com/watch?v=-9IuTWSXkQg&t=557s –
https://www.youtube.com/watch?v=LYpgPGrkgng&t=883s - और - आपको हमारे 380videos में बाइबिल के बहुत से सवालों के जवाब मिल जायेंगे - हमारे सभी विडियो देखने के लिए CHANNEL LINK (चेनल लिंक) -
https://www.youtube.com/channel/UCodyYrtR4YgIqzj8AjmZ6jg/videos
A-2 : बुध्दि WISDOM
आप कितनी भी किताबें पढ़ लीजिये, फिर भी आपको वो बुध्दि नहीं मिल सकती जो बाइबिल से मिलती है l उसका कारण ये है कि बाकी सभी किताबें मनुष्यों द्वारा लिखी गई हैं, इसलिए उनमे केवल मनुष्य का ज्ञान और मनुष्य की समझ है l लेकिन बाइबिल परमेश्वर ने स्वयं लिखवाई थी, इसलिए उसमे परमेश्वर की बुध्दि और परमेश्वर का ज्ञान है l जो मनुष्य संसार की बुध्दि को एक तरफ रखकर परमेश्वर की बुध्दि से चलना सीख जाता है, वो न केवल जीवन को समझ जाता है, बल्कि जीवन की कठिन से कठिन परिस्तिथियों में भी खड़ा रहता है, और उनके मध्य में भी आनंद अनुभव करता है - येशु का आनंद ! - जो संसार नहीं दे सकता l
इस विषय को गहराई से समझने के लिए आप हमारे ये सन्देश देखिये
https://www.youtube.com/watch?v=xPg4NvfW5Ns -
A-1 : विश्वास की परीक्षा कब होती है? TEST OF FAITH
अपना विश्वास कैसे बढायें? परमेश्वर पर सच्चा विश्वास क्या है? विश्वास के विषय में YouTube पर हमारे ये सभी video देखिये -
https://www.youtube.com/watch?v=tD57z3McW84
https://www.youtube.com/watch?v=PD0Mn1S0MCg
https://www.youtube.com/watch?v=N8mkm9YgKrM
https://www.youtube.com/watch?v=l2HhWwG2DJA
https://www.youtube.com/watch?v=ZqjoePsJ-g4